एक रिश्ते की गहराई
मुंबई की भीड़भाड़ वाली गलियों में एक छोटा सा घर था। उस घर में रहती थी १२ साल की रिया और उसकी माँ सविता। सविता एक स्कूल में टीचर थीं, जबकि रिया पढ़ाई में हमेशा अव्वल आती थी। लेकिन उन दोनों के बीच एक दीवार सी बन गई थी। रिया को लगता था कि माँ उसकी ज़िंदगी में दखल देती हैं, और सविता समझ नहीं पा रही थीं कि बेटी उनसे क्यों दूर होती जा रही है।
एक दिन, रिया ने स्कूल के प्रोजेक्ट के लिए अपनी माँ से नया लैपटॉप माँगा। सविता ने मना कर दिया, "बेटा, इस महीने फीस भरनी है। अगले महीने दे दूँगी।" रिया गुस्से से चिल्लाई, "तुम्हें कभी मेरी बात समझनी ही नहीं!" और दरवाज़ा ज़ोर से बंद करके कमरे में चली गई। सविता की आँखों में आँसू आ गए। वो जानती थीं कि रिया को नाराज़ करना उनकी मजबूरी थी।
वो रात जब सब कुछ बदल गया
उसी रात, रिया ने माँ के पुराने डायरी के पन्ने पलटे। एक पन्ने पर लिखा था – "आज रिया को नए जूते दिलाने के लिए मैंने अपना गहना बेच दिया। उसकी मुस्कान देखकर लगता है, सब कुछ सही है।" रिया की साँसें तेज़ हो गईं। अगले पन्ने पर लिखा था – "डॉक्टर ने कहा, मेरी आँखों की रोशनी कम हो रही है... पर रिया की पढ़ाई के लिए मैं ट्यूशन पढ़ाती रहूँगी।"
रिया की आँखों से आँसू बह निकले। उसे एहसास हुआ कि माँ ने कितना त्याग किया था। वो दौड़कर माँ के पास गई और गले लगकर रोने लगी, "माँ, मुझे माफ़ कर दो।" सविता ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "तू मेरी जान है, बेटा।"
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क्यों यह कहानी खास है?
यह कहानी उन सभी रिश्तों को समर्पित है जहाँ प्यार कभी बोलता नहीं, बस दिखता है। यहाँ कोई नैतिक शिक्षा नहीं, बस एक माँ का संघर्ष और बेटी का प्यार है।